हजारों चेहरे - गजल
हजारों चेहरे मिलते है भीड़ में हमदर्द नहीं मिलता कोई अजनबी इस शहर में फिर तुमसा नहीं मिलता तलाशता रहता हुं किवाड़ पत्थरिली दिवार में गुमशुदा मंज़िल का पता सराबोंमें नहीं मिलता भटकते रहते है ख्वाब कागज़ पे स्याही तले वह लम्हा जो मुक्कमल था दुबारा नहीं मिलता बहुत दूर चल के आया हूँ बेखुदी में साहिल गिली रेत पर लिखा हर्फ़ होश में नहीं मिलता दिवानों से मत पूछो सलीक़ा सुकून-ए-जिंदगी का खानाबदोश परिंदों के घर का ठिकाना नहीं मिलता अब शामे-मैकदा दिल नहीं बहला पाएगी नदीम उसकी आवाज़ का नशा पैमानों में नहीं मिलता -- गणेश