रात रोती रही


घर में पानी का सैलाब और पेट में भूख का
बच्चों को नींद सपने दिखाती तो भी कैसे
रात बारिश बन कर रोती रही माँ की आँखों में आंसू देखकर

उधार में ख़रीदे हुए बर्तन और मुफ्त में मिली छत से टपकती बूँदें
दोनों का झगडा घर की नींद खरीद ले गया रात भर के लिए
मिटटी के तेल की फरफराती हुई रौशनी और गठड़ी का तल चूमता अनाज बस था उनका सूरज
बेबसी का असीम अँधेरा बाकी सारे ख्वाब कब का ले गया था ओझल करके

दिनभर लोगों के मकान बनाने के लिए पत्थर उठाने वाले माँ के थके हाथ
रात भर पानी से भरे बर्तन उठाते रहे अपना खुद का घर बचाने के लिए
ना उनको आराम का मौका मिला ना बच्चों के बाल सुलझाने का
पत्थरों ने उनके नसीब की रेखाएं अपने बदन पे सालो पहले ही खिंच ली थी

सुबह होने तक बारिश रुक गयी लेकिन वादा दे गयी कल-परसों फिरसे लौट आने का
उतने वक़्त में कुछ और मकान बने, मिटटी के तेल की रौशनी और अनाज के गठड़ी की गहराई और थोड़ी कम हुई
रात बारिश बन कर रोती रही बच्चों के आँखों में अँधेरा देखकर..

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